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शँकराचार्य स्वामी स्वरुपानँद सरस्वती द्वारा साँई प्रतिमाओँ को हिँदू मँदिरोँ मेँ न रखे जाने की बात कहकर एक नये विवाद को जन्म दे दिया है ।देश भर मेँ बहुत बड़ी सँख्या मेँ साँई बाबा के अनुयायियोँ द्वारा शँकराचार्य का कड़ा विरोध किया गया है ।सवाल यह है कि हिँदू धर्म के शँकराचार्य जैसे अति महत्वपूर्ण पद पर बैठे स्वामी स्वरुपानंद सरस्वती बार बार साँई विवाद को क्यूँ तूल दे रहे हैँ ?क्या वास्तव मेँ साँई पूजा से हिँदू सँस्कृति व हिँदू धर्म के अस्तित्व पर खतरा मँडरा रहा है ?इस सवाल पर यदि गँभीरता से विचार करे तो हम यह देखते हैँ कि साँई पूजा से हिँदू धर्म का और विस्तार हुआ है और समुद्र से विशाल हिँदू धर्म ने साँई के अनुयायियोँ को भी अपने हृदय मेँ स्थान दिया है ।साँई बाबा जन्म से मुस्लिम अवश्य थे लेकिन उन्होने राम ,कृष्ण ,काली ,दुर्गा की भी पूजा की है ।’सबका मालिक एक ‘का सँदेश अपने भक्तोँ व श्रध्दालुओँ को सुनाकर सर्व धर्म सद्भाव व सामाजिक समरसता को बढ़ावा दिया है ।साँई बाबा के अनुयायी जो राम ,कृष्ण ,काली ,दुर्गा को भी मानते है और साँई को भी ,फिर साँई को मानने वालोँ से हिँदू धर्म को खतरा होने जैसे सवाल निरर्थक सिध्द होते हैँ ।हमारा हिँदू धर्म जिसने अनेको मत पध्दतियो ,को खुद मेँ समाहित कर लिया है ,जिस धर्म मेँ 33 करोड़ देवताओँ और 36 करोड़ देवियोँ की पूजा होती है वही हिँदू धर्म साँई को भी यदि भगवान मान लेता है तो कमजोर कैसे हो सकता है ।इसलिए हम सभी को इसका विरोध करने की जगह यह समझने की जरुरत है कि साँई पूजा से हिँदू धर्म पहले से और भी ज्यादा मजबूत हुआ है ।अत: हमेँ इस मुद्दे को छोड़कर अन्य विषयोँ जैसे धर्माँतरण ,छूआछूत ,सामाजिक गैरबराबरी जाति पाँति ,ऊँच नीच जैसे गँभीर विषयोँ पर ध्यान देने व कार्य करने की जरुरत है जो वास्तव मेँ हिँदू धर्म के लिए अहितकर हैँ
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