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भाषा किसी समाज और उसकी संस्कृति को जानने का माध्यम होती है।भाषा किसी भी समाज की प्राण होती है,भाषा के पतन से समाज निष्प्राण और चेतनहीन हो जाता है।
हमारी मातृभाषा हिन्दी जिसके सहारे हम विभिन्न विरोधाभासोँ के बाद भी आपस मेँ जुड़े रहे ,जिस भाषा का अपना एक गौरवशाली इतिहास रहा है। जिस भाषा ने हमेँ अपने पूर्वजोँ, परम्पराओँ ,विश्वासोँ,से जोड़े रखा।जिस भाषा का अपना व्याकरण , विशाल और समृद्द शब्दकोश है जो भाषा ऋषि- मुनियोँ के मुख से निकली हुई है वह भाषा बाजार की नहीँ हमारे गर्व की भाषा है।
हमारी मातृभाषा हिन्दी जिसे हमने अपनी माँ से सीखा ।हमारे देश का विशाल भूभाग जिस भाषा से गुंजायमान होता है ।पशु पक्षी भी इसके शब्दोँ के भावोँ को समझ जाते हैँ।जिस भाषा को हमारे पूर्वज सदियोँ से बोलते आये है।जो साहित्य ,ज्ञान ,अभिनय ,क्रान्ति से लेकर जनजीवन के रोजमर्रा के कार्यो और राजदरबारोँ मेँ भी प्रयुक्त होती आयी।जिस भाषा को हमारे पूर्वजोँ ने विपरीत परिस्थितियोँ मेँ भी सहेजकर रखा ।जो आज भी हिन्दुस्तान की प्रमुख भाषा है।जिसके माध्यम से हम भारतीय आपस मे आसानी से जुड़ जाते है ।हम अपने हृदय पटल पर उभरे भावोँ को बहुत ही आसानी से व्यक्त कर पाते हैँ ।जो कि अन्य किसी भाषा मे सम्भव ही नहीँ है।जिस भाषा मे हमारी सभ्यता .संस्कृति , और पूर्वजोँ की आवाजेँ गूँजती हैँ ।इसकी मधुरिम आवाज, इसका कानोँ मे जैसे मिश्री घोलता हुआ स्नेहिल स्पर्श जो हृदय के तारोँ को झंकृत कर देता है ,वह हिन्दी भाषा हमारे लिए गर्व की भाषा है।जिस हिन्दी भाषा ने हमेँ इतिहास के घटनाक्रमोँ ,प्राचीन जातियोँ ,विदेशी आक्रमणोँ .प्राचीन समाज और परम्पराओँ के बारे मेँ बताया ।कभी अतीत काल का इसका समृध्द और उन्नत इतिहास तो कभी मध्यकाल मेँ हिन्दी के स्थान पर अन्य दूसरी भाषाओँ को राजभाषा या सरकारी भाषा का दर्जा दिया गया ।हिन्दी की घोर उपेक्षा हुई ।पर क्या इन प्रतिबन्धोँ से हिन्दी कमजोर हुई या फिर हिन्दी का स्थान अन्य भाषाओँ ने ले लिया ?जी नहीँ ,हिन्दी ना तो कमजोर हुई ना ही पद-च्युत ,बल्कि हिन्दी हिन्द के धरातल पर और भी मजबूत होकर उभरी ,पहले से ज्यादा स्वीकार्य ।,
क्योँकि जिस प्रकार से माँ का स्थान अन्य दूसरी स्त्री नहीँ ले सकती वैसे ही हिन्दी का स्थान किसी दूसरी भाषा को नहीँ दिया जा सकता ।
हिन्दी की उपेक्षा करके जिन भाषाओँ को मुख्य भाषा का दर्जा दिया गया था उन भाषाओँ को हिन्दी ने अपने समुद्र से विशाल हृदय मे समाहित कर लिया ,और अन्य भाषाओ को हूदयंगम करती हुई हिन्दी देश क्षेत्र और सरहदोँ की दीवारोँ को तोड़ती हुई हिन्दी के बंजर क्षेत्रोँ जैसे माँरीशस,गुयाना,केन्या तक पहुँच गयी जो कि हमारे लिए गर्व की बात है।
महान ब्रिटिश इतिहासकार मैक्समूलर ने संस्कृत को विश्व की प्राचीनतम भाषा का दर्जा दिया है औरमैक्समूलर सहित विभिन्न इतिहासकारोँ और भाषाविदोँ ने संस्कृत भाषा को फ्रेंच ,जर्मन .स्पेनिश, अंग्रेजी आदि भाषाओँ की जननी बताया है। यह सर्वविदित है कि हिन्दी भाषा संस्कृत की अपभ्रँश है इससे बड़े गर्व की और क्या बात हो सकती है।
डेविड फ्रेली जैसे अमेरिकी विद्वान भारत आकर हिन्दी सीखते हैँ ।अटल बिहारी वाजपेयी संयुक्त राष्ट्र संघ मेँ हिन्दी मेँ भाषण देते हैँ,और आँस्कर पुरस्कार विजेता हालीवुड फिल्म स्लमडाँग मिलेनियर का जय हो गाने पर लोग झूम उठते हैँ और अंग्रेजी के अधिनायकवाद वाले इस युग मेँ ‘जय हो’ शब्द अंग्रेजी शब्दकोश का दस लाखवाँ शब्द बन जाता है।जो हिन्दी भाषियोँ के लिए गर्व स्वाभिमान, और आत्मसंतुष्टि की बात है।
हिन्दी केवल गरीबोँ ,अनपढ़ोँ की भाषा है यह कहना निराधार और अतार्किक है क्योँकि सूरदास हिन्दी मे रचनायेँ करके हिन्दी साहित्य गगन के सूर्य बन जाते हैँ तुलसीदास मातृभाषा मे अपनी बात कह कर सुषुप्त लोगोँ को जगा देते हैँ और कबीरदास अपनी सीधी साधी सरल हिन्दी वाणी मेँ अपनी बातेँ कहकर कुरीतियोँ अन्धविश्वासोँ ,और आडम्बरोँ को उखाड़ फेँकते हैँ अपने से ज्यादा पढ़े लिखे लोगोँ को कबीरदास आसानी से हिन्दी मे समझा सकते हैँ तो यह कैसे कहा जा सकता है कि हिन्दी केवल गरीबोँ अनपढ़ोँ की भाषा है।भारतीय क्रिकेट टीम के कई बड़े सितारे आज भी हिन्दी बोलते हैँ,हिन्दी सिनेमा के महानायक अमिताभ जी की हिन्दी के लोग मुरीद हैँ। लोकसभा और राज्यसभा के विभिन्न सदस्य आज भी शानदार हिन्दी बोलते हैं।
स्वतंत्रता संग्राम का शंखनाद करने वाली हिन्दी ने जयप्रकाश नारायण की सम्पूर्ण क्रान्ति को सफल बनाया।
अभी हाल मे ही हुए अन्ना आँदोलन जिसमेँ अमीर गरीब ,अनपढ़ से लेकर उच्च शिक्षित लोग,उद्योगपति,वकील,राजनेता,और विभिन्न भाषा भाषियोँ को एकजुट करने मेँ हिन्दी की महत्वपूर्ण भूमिका रही।इस आन्दोलन मेँ पूर्वोत्तर और द्क्षिण भारत के निवासी भी थे
और कुछेक अपवादोँ को छोड़कर पूरा आंदोलन हिन्दी मे संचालित किया गया ।यह हिन्दी की लोकप्रियता और स्वीकार्यता का सबसे बड़ा उदाहरण है कि जिन राज्योँ मे हिन्दी नहीँ बोली जाती .वहाँ के भी निवासी इस आंदोलन से जुटे ।जो किसी दूसरी भाषा के जरिए इतना बड़ा आंदोलन खड़ा करना सम्भव नहीँ था।
अत:हिन्दी बाजार की नहीँ गर्व ,स्वाभिमान और आत्मगौरव की भाषा है
यह गरीबो, अनपढ़ोँ के साथ साथ .पूरे भारत और हम सब की भाषा है।
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