Menu
blogid : 15450 postid : 595404

कोशल के उत्तराधिकारी,जब चौदह वर्ष हुए वनवासी

अनुभूति
अनुभूति
  • 38 Posts
  • 35 Comments

त्याग अवध वन राम चलेँ जब
छोड़ प्रजा, परिवार चले जब
मान पिता आदेश चले जब
अवध को त्याग ,अवध के प्राण चलेँ जब
कोशल के उत्तराधिकारी ,जब 14 वर्ष हुए वनवासी
अवधपुरी मेँ मातम छाया ,जन जन मेँ छा गयी उदासी
पंख कटा ज्योँ विहग तड़पता वैसी ही थी हाल अवध की
प्रजा राम विन ऐसे जैसे,जल से दूर विकल मछली सी
पशु पक्षी जड़ चेतन व्याकुल ,जैसे शोक लहर चलती थी
जनमानस मेँ अवधपुरी के दु:ख की तीव्र पवन चलती थी
कोशल की पढ़ करुण कथा को
दु:ख मे डुब रुके दिनकर तब
त्याग अवध वन राम चलेँ जब,
छोड़ भवन,परिवार चलेँ जब
14 वर्षो वनवास चलेँ जब
लक्ष्मण सीता के साथ चलेँ जब
राम विरह मेँ दु:खी अयोध्या ज्योँ बिना शाख के ठूँठ वृक्ष सी
कल ही होना राजतिलक था पर आयी कैसी मनहूस घड़ी सी
कल तक खुशियोँ, ढ़ोल,मंजीरी की रहीँ गूँजसि
पर राम विरह मेँ आज अयोध्या दिखती है सूनी सूनी सी
नागराज ज्योँ मणि को खोकर ,हो जाता निश्तेज ,अपनी सारी शक्ति गँवाकर
कस्तूरी के लिए हिरण ज्योँ होता पागल
दशरथ की भी राम विरह मेँ वही दशा थी
ज्योँ जल मेँ डूब रहा हो मानव,तो सिर्फ उबरने की धुन होती
त्योँ दशरथ राम रुप का प्रेमी ,उसको राम राम की धुन थी
दशरथ राम विरह का रोगी,उसकी तो बस राम दवा थी
राम विरह मेँ हुआ बावरा ज्योँ प्यासा पथिक बिना पानी के
होकर दूर राम से दशरथ
राम विरह मेँ तड़प तड़प कर
त्याग प्राण परलोक चला तब
त्याग अवध वन राम चलेँ जब
छोड़ प्रजा परिवार चलेँ जब
मान पिता आदेश चलेँ जब
अवध को त्याग,अवध के प्राण चले जब
चौदह वर्षो वनवास चले जब।।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh