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श्रीकृष्ण-महिमा

अनुभूति
अनुभूति
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जो मुरली कभी बजाता है
रण भूमि मध्य छा जाता है
गोवर्धन को उँगलियोँ मध्य
घनश्याम नचाये जाता है
राधा संग रास रचाता है
पनघट पर उन्हेँ नचाता है
जो माखनचोर कन्हैया है
डूबते की नाव खेवय्या है
जो गाय चराता गोकुल मेँ
दु:ख दूर करे प्रभु पल भर मेँ
जो गर्व तनिक ना सहता है
कण कण मेँ रमता बसता है
जो धर्म ,मनुज की रक्षा को
अवतार ग्रहण कर आता है
द्यूत खेल मेँ लगी दाँव पर
द्रोपदी की लाज बचाता है
जो योगीराज मुरारी है
जो सकल गुणोँ का स्वामी है
जो कालिय नाग को नथता है
जो क्रूर कंस का हन्ता है
जो न्याय युध्द मेँ, महाभारत के
पार्थ सारथि बनता है
यशोमति मैया का दुलारा है
देवकी की आँख का तारा है
दुयोँधन के छप्पनोँ भोग छोड़
जो साग विदुर घर खाता है
जो लीला अजब दिखाता है
जो चाँद पकड़ने धाता है
भक्तोँ की रक्षा करने को
ले चक्र सुदर्शन आता है
जो कर्म वाद का प्रेरक है
और सिर्फ विजय का दाता है
जिसकी छवि ही है मनमोहन
शत्रु भी शीश नवाता है।

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