अनुभूति
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मै मासूम था, जो बदलता न था
जमाने के सच को समझता न था
लोग मिलते रहे और बिछड़ते रहे
उनकी यादोँ मेँ मै बस तड़पता रहा
मै मासूम था जो बदलता न था
जमाने के सच को समझता न था
मै हमदर्द जिनको समझता रहा
उनकी नजरोँ मेँ मै एक खिलौना भर था
खेलकर मुझसे जी भर ,राह चलते बने
दर्द देते रहे ,मै दवा समझता रहा
मै मासूम था जो बदलता न था
जमाने के सच को समझता न था
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